Tuesday, September 10, 2013

इतिहास की परीक्षा, परीक्षा का इतिहास 
इतिहास परीक्षा थी उस दिन, चिंता से ह्रदय धड़कता था। 
जब से जागा था सुबह तभी से,  बाँया नयन फड़कता था। 
जो उत्तर  मैंने  याद किये, उनमें से आधे याद हुए। 
वे भी स्कूल पहुँचने तक, यादों में ही बर्बाद हुए। 
जो सीट दिखाई दी खाली, उस पर ही डट कर जा बैठा। 
था एक निरीक्षक कमरे में, वह आया झल्लाया, ऐंठा। 
रे-रे तेरा है ध्यान किधर, क्यूँ करके आया देरी है। 
तू यहाँ कहाँ पर आ बैठा, उठ जा यह कुर्सी मेरी है। 
मैं उचका एक उचक्के सा, मुझमें सीटों मैं मैच हुआ। 
चकरा-टकरा कर कहीं एक, कुर्सी के द्वारा catch हुआ। 
पर्चे पर मेरी नजर पड़ी तो, सारा बदन पसीना था। 
फिर भी पर्चे से डरा नहीं जो, यह मेरा ही सीना था। 
कॉपी के बरगद पर मैंने, बस कलम कुल्हाड़ा दे मारा। 
घंटे भर के भीतर कर डाला, प्रश्नों का वारा-न्यारा। 
अकबर का बेटा था बाबर, जो वायुयान से आया था। 
उसने ही हिन्द महासागर, अमरिका से मँगवाया था। 
गौतम जो बुद्ध हुए जाकर, वे गांधीजी के चेले थे। 
दोनों बचपन में नेहरु के संग,आँख-मिचोली खेले थे।  
होटल का मालिक था अशोक, जो ताजमहल में रहता था। 
ओ अंग्रेजों भारत छोड़ो, वह लाल किले से कहता था। 
झाँसा दे जाती थी सबको, ऐसी थी झाँसी की रानी। 
अक्सर अशोक के होटल में, खाया करती थी बिरयानी। 
ऐसे ही चुन-चुन कर मैंने प्रश्नों के पापड़ बेल दिए। 
उत्तर के ये ऊँचे पहाड़, टीचर की ओर धकेल दिए। 
टीचर जी इस ऊंचाई तक, बेचारे कैसे चढ़ पाते। 
लाचार पुराने चश्मे से, इतिहास नया क्या पढ़ पाते। 
उनके बस के बाहर मेरा इतिहासों का भूगोल हुआ। 
ऐसे में फिर क्या होना था, मेरा नंबर तो  गोल हुआ। 
लेखक - अज्ञात 

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